वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया,
यादों के क़ाफ़िले से दिसम्बर कहाँ गया,
चाय के तल्ख़ घूँट से उठता हुआ ग़ुबार,
वो इंतिज़ार-ए-शाम वो मंज़र कहाँ गया.
वो सर्द धूप रेत समुंदर कहाँ गया,
यादों के क़ाफ़िले से दिसम्बर कहाँ गया,
चाय के तल्ख़ घूँट से उठता हुआ ग़ुबार,
वो इंतिज़ार-ए-शाम वो मंज़र कहाँ गया.
Vo Sard Dhup Ret Samandar Kahan Gaya,
Yaadon Ke Kafile Se December Kahan Gaya,
Chai Ke Talkh Ghunt Se Uthta Hua Gubar,
Vo Intezaar-E-Sham Vo Manjar Kahan Gaya.